जीना क्यों ये सवाल रखे हैं
तो सुनो ख़्वाब पाल रखे हैं
एक शादी से परेशां
हूँ मैं
तुमने कितने बवाल रखे हैं
ये तो चुभते सुकून देते भी
शब्द कितने कमाल रखे हैं
हर अदा बढ़ के एक दूजे से
हुस्न के कितने जाल रखे हैं
जब भी देखो रिझाती
रहती हो
तभी डिम्पल
से गाल रखे हैं
जब से देखा है तुम्हें
सच बोलूँ
बहुत से काम टाल रखे हैं
तुम मिली तो लगा जवानी है
तब से खुद को जमाल रखे हैं
ये जो कविताएं लिखी हैं मैंने
इसमें दुःख – दर्द डाल रखे हैं
मौत आती है लौट जाती
है
ख़्वाबों के ढेरों
ढाल रखे हैं
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक –
poetpawan50@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें