समझा था गणित
जिन्दगी सो वो बिखर गयी
अच्छा हुआ कि प्यार मिला तो सुधर
गयी
जिस ज़िन्दगी की ख़ातिर सारे जतन
किये
होते जतन ही पूरा ज़िन्दगी
गुज़र गयी
जिस ज़िंदगी से मिलने
को भटका मैं उम्र भर
फिर मौत मिली बोली
ज़िंदगी गुज़र गयी
भीतर थी मेरे
ज़िन्दगी ढूंढा किया बाहर
ज सच पता चला
तो वो दूजे नगर गयी
ज़िंदगी से ही पता पूछा किया उसका
चुपचाप एक रोज किसी और घर गयी
अपने को खर्च
करना हंसते हुए पवन
फिर ज़िन्दगी कहेगी ज़िन्दगी संवर गयी
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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