यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

व्यवस्था


एक तरफ लच्छेदार भाषण,
एक तरफ अटकती टूटी- फूटी बोली.
एक तरफ सलीकेदार वस्त्रों में सजे,
एक तरफ आधे बदन नंगे
मैले – कुचैले फटे कपड़ों में अधढँका बदन;
एक तरफ बड़ी-बड़ी घोषणाएं,
एक तरफ असंख्य छोटे-छोटे पेट;
एक तरफ संवेदना के प्रवचन
एक तरफ टिमटिमाती गीली आँखें,
एक तरफ स्वतंत्रता और
मूलभूत अधिकारों की बात,
एक तरफ जीवन की
भीख माँगते जुड़े हुए हाथ;
एक तरफ वातानुकूलित कक्षों से
संदेशों का सीधा प्रसारण,
एक तरफ नंगे पाँव
धूप में खड़े लोग !
एक तरफ राष्ट्र के विकास का
डंका पीटने वाले लोग,
एक तरफ रैन बसेरों में
भूख और ठण्ड से ठिठुरते लोग !
एक तरफ अट्टालिकाओं में
सुविधाओं से सजे विद्यालय
और उसमें तानाशाहों की संताने,
एक तरफ सरकारी विद्यालयों में
प्रतिदिन चलने वाले भंडारे में
खिचड़ी के लिए जाते गरीबों के बच्चे !
पुलिस ! केस की बात तो दूर
गरीब का आवेदन तक
ठीक से नहीं स्वीकारती, बल्कि
करती है उलटे सीधे दस सवाल !
और साहबों के लिए आधी रात को
खुल जाता है उच्चतम न्यायालय का द्वार
अगर यही व्यवस्था है
लोक के लिए महान व्यवस्था
तो निकृष्टतम क्या होगा ?
बस! विचारता हूँ !


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com        

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