एक तरफ लच्छेदार
भाषण,
एक तरफ अटकती टूटी-
फूटी बोली.
एक तरफ सलीकेदार
वस्त्रों में सजे,
एक तरफ आधे बदन नंगे
मैले – कुचैले फटे
कपड़ों में अधढँका बदन;
एक तरफ बड़ी-बड़ी
घोषणाएं,
एक तरफ असंख्य
छोटे-छोटे पेट;
एक तरफ संवेदना के
प्रवचन
एक तरफ टिमटिमाती
गीली आँखें,
एक तरफ स्वतंत्रता
और
मूलभूत अधिकारों की
बात,
एक तरफ जीवन की
भीख माँगते जुड़े हुए
हाथ;
एक तरफ वातानुकूलित
कक्षों से
संदेशों का सीधा
प्रसारण,
एक तरफ नंगे पाँव
धूप में खड़े लोग !
एक तरफ राष्ट्र के
विकास का
डंका पीटने वाले लोग,
एक तरफ रैन बसेरों
में
भूख और ठण्ड से
ठिठुरते लोग !
एक तरफ अट्टालिकाओं
में
सुविधाओं से सजे
विद्यालय
और उसमें तानाशाहों
की संताने,
एक तरफ सरकारी
विद्यालयों में
प्रतिदिन चलने वाले
भंडारे में
खिचड़ी के लिए जाते
गरीबों के बच्चे !
पुलिस ! केस की बात
तो दूर
गरीब का आवेदन तक
ठीक से नहीं
स्वीकारती, बल्कि
करती है उलटे सीधे
दस सवाल !
और साहबों के लिए आधी
रात को
खुल जाता है उच्चतम न्यायालय
का द्वार
अगर यही व्यवस्था है
लोक के लिए महान
व्यवस्था
तो निकृष्टतम क्या
होगा ?
बस! विचारता हूँ !
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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