यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

मैं और मेरी लेखनी


हर दिन हर रचना के साथ
दाव पर लगती है मेरी लेखनी !
और मेरे अंतर्मन के
उदात्त ध्वनि की साख,
और मैं, जीत जाता हूँ.
हर रोज गर्व से भर जाता हूँ.
किन्तु, मेरी इस जीत के बदले
हार जाता हूँ बहुत कुछ !
जैसे- बच्चों की खुशियाँ,
पत्नी के श्रृंगार,
एक अदद छत,
और भी बहुत सारी
साधारण इच्छाएँ !
पास आकर उपहासात्मक हँसी
के साथ धीरे - धीरे
दूर चली जाती हैं.
यह सब एक क्षण में
मेरे चरणों के मोटे अंगूठे के
नख पर रख देंगे अपना मस्तक !
केवल उन्हें अपने अंतर्मन की
उदात्त ध्वनि और लेखनी का गर्व
सौंपने का, कर दूँ संकेत भर;
किन्तु, ऐसा होने पर
मैं हो जाऊँगा पराजित !
अपमान के साथ
पराजित होने से अच्छा
वीरता के साथ
संग्राम करते हुए
मृत्यु का वर्ण करना
अधिक सम्मान जनक होता है.
मरना तो कोई नहीं चाहता !
हाँ, किन्तु मृत्यु तो
सम्मान जनक ही होनी चाहिए.
और मैं इस वाक्य में
रखता हूँ पूर्ण निष्ठा !



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com  

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