हर दिन हर रचना के
साथ
दाव पर लगती है मेरी
लेखनी !
और मेरे अंतर्मन के
उदात्त ध्वनि की
साख,
और मैं, जीत जाता
हूँ.
हर रोज गर्व से भर
जाता हूँ.
किन्तु, मेरी इस जीत
के बदले
हार जाता हूँ बहुत
कुछ !
जैसे- बच्चों की खुशियाँ,
पत्नी के श्रृंगार,
एक अदद छत,
और भी बहुत सारी
साधारण इच्छाएँ !
पास आकर उपहासात्मक
हँसी
के साथ धीरे - धीरे
दूर चली जाती हैं.
यह सब एक क्षण में
मेरे चरणों के मोटे
अंगूठे के
नख पर रख देंगे अपना
मस्तक !
केवल उन्हें अपने
अंतर्मन की
उदात्त ध्वनि और
लेखनी का गर्व
सौंपने का, कर दूँ संकेत
भर;
किन्तु, ऐसा होने पर
मैं हो जाऊँगा
पराजित !
अपमान के साथ
पराजित होने से
अच्छा
वीरता के साथ
संग्राम करते हुए
मृत्यु का वर्ण करना
अधिक सम्मान जनक होता
है.
मरना तो कोई नहीं
चाहता !
हाँ, किन्तु मृत्यु
तो
सम्मान जनक ही होनी
चाहिए.
और मैं इस वाक्य में
रखता हूँ पूर्ण
निष्ठा !
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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