भोलापन भी है दुःखदायी
खेल को समझा प्रेम मितायी
मतलब साध लिए जब
मुझसे
तब मेरी औकात दिखायी
सच है मेरा
गीत
नहीं है
दिखता है पर मीत नहीं
है
मजबूरी में मुस्काता हूँ
आज का सच अतीत
नहीं है
कैसे रोता भरे नगर में
किसे बताता फंसा अधर
में
नस-नस सूज गयी दुःख
से तो
दुःख निकला बन गीत
शहर में
सब सोचे मैं गाता हूँ
सबका दिल बहलाता
हूँ
जन क्या समझे स्वर
में रोना
यूँ अपने दुःख खाता हूँ
विश्वासों ने ही लूटा
था
तब जाकर ये उर टूटा था
देवी समझ जिसे पूजा था
उसने ही मेरा घर लूटा
था
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें