मनुष्य को विध्वंस
अच्छा लगता है!
पेड़ काटना, तालाबों
को पाटना,
हवा को जहरीला करना;
पर्वतों को ढहाना,
पशुओं, पक्षियों,जलचरों
तथा अन्य को भी
बंधक बनाना,
कारागार में रखना,आखेट
करना,
और मन न भरे तो
हत्या कर
उनका भक्षण कर जाना!
दूसरों का भाग सीमित
करना;
पर अधिकार व
स्वतंत्रता को
नष्ट करना,
मनुष्य को अच्छा
लगता है.
वह अपनी कुटिल
बुद्धि और युक्तियों
के दुरुपयोग पर करता
है गर्व!
वह अपूर्व सुन्दरी,
आभामयी,
सर्वशक्तिमान,सर्जक,सम्मोहक
वात्सल्य से पूर्ण
प्रकति को
करना चाहता है अपने
आधीन!
और रहता है
प्रयासरत.
जैसे वृकासुर (
भस्मासुर )की कुदृष्टि
आदिशक्ति के प्रति
थी.
हाँ, वह स्वयं कभी
नहीं चाहता
होना प्रकृति के
अनुकूल.
सम्बंध तो दूर
अनुबंध भी नहीं
चाहता मनुष्य!
प्रकृति को समझता है
इतना तुच्छ
जैसे कौरवों ने नहीं
दिया था
पांडवों को पाँच
गाँव!
बिना युद्ध के सुई
के बराबर भूमि
ऐसा ही उद्घोष किया
है
मनुष्य ने प्रकृति
से
अपने मिथ्या अहंकार
में;
ऐसे में युद्ध तो
होना ही है !
कृष्ण के शांतिदूत
बनकर आने पर !
पुनः दोहराया जाएगा
इतिहास
मनुष्य करेगा बंधक
बनाने का प्रयास
किन्तु अहंकारी
मनुष्य का दुर्भाग्य
उसे पुनः कर देगा
दुर्योधन की तरह
हतबुद्धि
ये महामारी वही
कृष्ण है
जिसे बंधक बनाने के प्रयास
की
प्रतिक्रया भर है.
अब युद्ध होना
निश्चित है.
और युद्ध का परिणाम
जो भी हो
किन्तु विनाश तो
युद्ध का शाश्वत सत्य है.
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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