कुछ लोग न जाने
कितने ही वर्षों से
कह रहे हैं लगातार
दुनिया को बेहतर बनाना है
दुनिया खराब हो रही है
यह लोग नहीं हैं मात्र
यह एक सुदृढ़ मानसिकता है
अच्छा दिखने, अच्छा कहने और
संवेदनशील, बुद्धिजीवी होने का
सबसे निकृष्टतम ढकोसला
इनके दुनिया बेहतर बनाने की सोच ने
इन्हें और क्रूर और क्रूर
और अंदर से वहशी ही बना दिया
इन्होंने उन्हीं नारों के बल पर
नैतिकता की एक नकली चादर
बुनकर ओढ़कर लूट लिया
जितनी भी बेहतर दुनिया थी
शेष बदतर को बदतर
करते जा रहे हैं
दुनिया को और बेहतर बनाना है
के स्वार्थी नारों से यही कहकर
अर्थ, शक्ति और सत्ता को
बंद कर लिया मुट्ठी में
इसी की आड़ में
इन्होंने न जाने कितनों की
कर दी चुपचाप हत्या
और हमें पता चलते - चलते
दुनिया ही बदल गई
एक पूरी की पूरी दुनिया
सत्य, विश्वास, सौहार्द, पर्यावरण,
कविता, साहित्य, जंगल, पानी,
मिट्टी, नदी, मासूमियत, संवेदना
और भी जो कुछ
दुनिया में बेहतर था
कर दी गई सबकी हत्या
या जो बचे हैं थोड़े बहुत
मर रहे हैं, घुट - घुट कर
अगर अब भी आपको
समझ में नहीं आया
कि मैं किसके बारे में
कह रहा हूँ
तो आप का
मर जाना ही ठीक है
और मेरा चिल्ला चिल्ला कर
पागल हो जाना
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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