इन दिनों मैं एक नई खोज में लगा था
और बेहद परेशान हूँ
अपनी खोज के परिणाम को लेकर
बताने पर हँस सकते हैं कुछ लोग
क्योंकि आदमी अब नहीं हँसते
और हाँ मेरी खोज आदमी पर ही तो थी
पता है अब आदमी नहीं है
जिन्हें आप आदमी कहते हैं
या आदमीयत कहते हैं
वह उनमें नहीं है, शेष सब है
फिर भी आदमी कैसे ?
हाँ, दिखाई देते हैं आदमी की तरह
पूरा का पूरा
आदमी के सिवा उनमें सब है
अब मैंने मान लिया है
कह सकते हैं, जान लिया है
जो दिखाई दे, वह हो, जरूरी नहीं
और जो नहीं देखा है, वह नहीं हो,
वह भी जरूरी नहीं
आज-कल आदमी नहीं
लोग हैं, भीड़ है, आदमीपन की नकल है
हाँ, एक शब्द अपवाद है
मैं उसके लिए रिक्त स्थान भी
छोड़ रहा हूँ,ये भी सनद रहे
मेरे नगर में उपनगरीय रेल चलती है
लोगों ने कहा- उसमें इंजन नहीं होता
मैंने माना ही नहीं, बिना इंजन के रेल
लोग हैं, कुछ तो बोलेंगे ही
जाकर देखा, सचमुच इंजन नहीं दिखा
प्रथम दृष्टि में चूक गया, मान लिया
पाइथागोरस की प्रमेय की तरह
एक दिन फिर मन हुआ, खोज किया
और आखिर मिल ही गया
इंजन था डिब्बे बीच
चुपचाप छिपा हुआ
जब देखा पूरे डिब्बे में
आधा डिब्बा छुपा हुआ
और गड़गड़ाता हुआ साँस लेता
कई बार जो हम नहीं देख पाते
वो भी होता है
और जो देखते हैं, वह नहीं होता
हमने बचपन में, आसमान में
कबूतर, चील जितने बड़े जहाज उड़ते देखे थे
और मानते थे, इतना ही बड़ा होगा
पर सच यह था कि जो बस
सड़कों पर चलती देखी थी
उससे बड़ा निकला
रेल देखने से पहले हम
बस कोई सबसे बड़ा वाहन मानते थे
रेल की बात झुठला देते थे
जब रेल देख लिया तो
झुठलाने की प्रवृत्ति ही भूल सी गए
हवा दिखाई नहीं देती
पर होती तो है
हवा महसूस की जा सकती है
आदमी या आदमीयत भी
महसूस करने की चीज है
जो अब नहीं होती
जिन चीजों से बनता है आदमी
वही नहीं है आदमी में
फिर मैं कैसे मान लूँ कि
वो आदमी है
वह बस दिखता है आदमी की तरह
या आदमी की नकल करता है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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