मैं बडबडाता हूँ
उसके साथ होते हुए भी
अकेले और वो ख़ुद में खोयी रहती है
अकेले और वो ख़ुद में खोयी रहती है
अब ये आलम है कि
एक ही कमरे में दो लोग रहते हैं
एक ही कमरे में दो लोग रहते हैं
दोनों एक दूसरे में रहते
भी हैं साथ-साथ
मगर फिर भी हैं जुदा-जुदा
मगर फिर भी हैं जुदा-जुदा
मेरे बिना वो नहीं,
उसके बिना मैं नहीं,
सदियों का सच , फिर भी जाने कैसे
दोनों एक - दूसरे के बिना जीते हैं
सदियों का सच , फिर भी जाने कैसे
दोनों एक - दूसरे के बिना जीते हैं
ये सच नहीं होना
चाहिए मगर आज-कल का सच यही है
जानते हो क्यों, क्योंकि
दोनों की चाहते अब साझा नहीं रही
दोनों की चाहते अब साझा नहीं रही
वो कुछ और चाहती है
मेरी प्राथमिकता कुछ और है
मेरी प्राथमिकता कुछ और है
उसे एकांत चाहिए,
शांति चाहिए, और
ढेर सारा, उसका वाला प्यार चाहिए
ढेर सारा, उसका वाला प्यार चाहिए
मैं भी उसकी चाहतों
में शामिल होना चाहता हूँ
हमारा बनाना चाहता हूँ.
हमारा बनाना चाहता हूँ.
पर मेरी प्राथमिकतायें
बताती हैं
पहले रोटी चाहिए, कपड़ा चाहिए
पहले रोटी चाहिए, कपड़ा चाहिए
और हो सके तो थोड़ा
पैसा चाहिए.
मैं अनाज का भूखा
हूँ वो प्यार की.
कुछ खाए-अघाए लोग
मेरे खिलाफ भड़का रहे हैं .
मेरे खिलाफ भड़का रहे हैं .
बराबरी के नाम
पर,स्वतंत्रता
और अभिव्यक्ति के नाम पर
और अभिव्यक्ति के नाम पर
ये खुद को सामाजिक
कार्यकर्ता कहते हैं
संस्था भी चलाते हैं
संस्था भी चलाते हैं
मंहगे चश्में पहनते
हैं इतने कि
मेरे तीन जोड़ी कुर्ते पायजामें आ जाय .
मेरे तीन जोड़ी कुर्ते पायजामें आ जाय .
मंहगे होटलों में
विचार-विमर्श करते है
उस विमर्श के कुछ घंटे
के खर्च से
मेरा पूरा साल कट सकता है.
मेरा पूरा साल कट सकता है.
पर ये इस बात को समझ
के भी कभी नहीं समझेंगे
जैसे देशी बाबू
अमेरिका से कुछ साल बाद
लौटने पर भोजपुरी नहीं समझते या... जो भी हो
लौटने पर भोजपुरी नहीं समझते या... जो भी हो
वैसे वो जानती है,
मैं ज़िंदा नहीं रहूँगा
तो, वो भी ज़िंदा नही रहेगी
तो, वो भी ज़िंदा नही रहेगी
बस उसे यही समझाना
चाहता हूँ
मैं उससे समझौता चाहता हूँ.
मैं उससे समझौता चाहता हूँ.
थोड़ा वो झुके,थोड़ा
मैं झुकूं, मैं नहीं,
हम बनकर जीना चाहता हूँ तुम्हारे साथ–साथ
हम बनकर जीना चाहता हूँ तुम्हारे साथ–साथ
थोड़ा तुम अपने
अरमानों को मारो,
थोड़ा मैं अपनी जरूरतों को मारूं
थोड़ा मैं अपनी जरूरतों को मारूं
थोडा तुम मुझे
सम्भालो,
थोड़ा मैं तुम्हें सम्भालू
थोड़ा मैं तुम्हें सम्भालू
अगर मंजूर है तो आओ
तुम्हारा बहुत सा स्वागत है .
तुम्हारा बहुत सा स्वागत है .
वरना मैं बलिदान
होने को तैयार हूँ
करता हूँ तुम्हें स्वतंत्र
तो जाओ ढूंढो कोई ऐसा बदन
जो तुम्हें दे सके पनाह
जिसके बदन की जरूरतें अघा गई हों
फिर देखना तुम्हारा राज हो शायद
करता हूँ तुम्हें स्वतंत्र
तो जाओ ढूंढो कोई ऐसा बदन
जो तुम्हें दे सके पनाह
जिसके बदन की जरूरतें अघा गई हों
फिर देखना तुम्हारा राज हो शायद
पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmai.coml
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