पर्वत की चोटी पे फतह इतनी भी आसान नहीं
फतह तो ठीक सलामत आना
इतना भी आसान नहीं
वो चाहें और हो जाए वो कोई भगवान नहीं
इंसा भगवन हो जाए ,इतना भी आसान नहीं
हार-जीत तो बाद की बात है असली बात मुकाबले की
लडूं
और मैं हार भी जाऊं इतना भी आसान
नहीं
डींग हाँकना और खूब बढ़ –चढ़ करके बातें करना
वक्त पड़े पे बात निभाना इतना भी आसान नहीं
बाप चाहते हैं बनना पर मुझे पता है कौन हैं वो
वो कहें और छोड़ दें हम इतना भी आसान नहीं
प्यार किये हैं कहते हैं तो मान भी लेते हैं
निभा भी लेंगे ये भी मानूं इतना भी आसान नहीं
आधी रात जवानी की संग मेरे गुजारी है तुमनें
फुर्कत में यूं उम्र कटेगी इतना भी आसान नहीं
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