भीड़ से रोज-रोज मिलता हूँ
काम मैं रोज यही करता हूँ
सुबह जाता हूँ शाम आता हूँ
यूँ ही जिन्दगी बिताता हूँ
लोगों से दिन भर मिलता हूँ
शाम अकेला फिर होता हूँ
जमाने भर से मिल चुका हूँ मगर
खुद से मिलने का शौक रखता हूँ
जिससे जब चाहा सब मिले मुझको
खुद से की बात तो फटकारा मुझको
हूँ मैं क्या खुद को समझना चाहता हूँ
मैं खुद को खुद से मिलाना चाहता हूँ
मेरी हस्ती है क्या समझना चाहता हूँ
कुछ सवालात खुद से खुद ही करना चाहता हूँ
जिन्दगी भी खूब अय्यारियां करती है मुझसे
खुद को ही खुद से कभी मिलने नहीं देती
जमाने भर को मैं जमाने से मिलाता हूँ
चाहकर मैं खुदी से खुद नहीं मिल पाता हूँ
बहुत घूमा हूँ जमाने भर में बाहर-बाहर
मेरे भीतर भी एक है दुनिया देखना उसको अब मैं चाहता हूँ.
भूख की कीमत क्या है जाओ देखो थाने पर
रोटी चोर भाग रहा था पकड़ा गया है थाने पर
ये बुरा वो और बुरा उँगली उठाता सब पर
खुद से खुद को देख जो पाता खुद शर्माता खुद पर
अब रोने से क्या होगा जीवन भर हँसे दूसरों पर
काश हुनर सीखा होता कुछ हँसने का खुद पर
poetpawan50@gmail.com
सम्पर्क-7718080978
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