जब तक मैंने विश्वास न किया था.
किसी ने घात भी न किया था.
घात का जन्म विश्वास के बिना संभव नहीं.
एक दिन मैंने कर ही लिया उस पर विश्वास.
क्योंकि मैंने कर लिया था उससे प्यार !
प्यार होता भी कैसे बिन विश्वास ?
विश्वास ने धीरे–धीरे समर्पण सिखाया.
समर्पण के आते ही प्यार परिपूर्ण होना चाहा ?
और तभी अचानक हुआ विश्वासघात !
मैंने जो किया था विश्वास.
विश्वास से ही मिलकर बना है विश्वासघात.
उस विश्वासघात के आघात से,
ह्रदय हो गया है इतना विदीर्ण.
कि अब किसी पर विश्वास करने की
सोचकर ही कांप उठती है रूह .
न करता विश्वास न होता विश्वासघात.
ईमेल-पवनतिवारी@डाटामेल.भारत
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