यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

विश्वासघात

        

      

जब तक मैंने विश्वास न किया था.

किसी ने घात भी न किया था.

घात का जन्म विश्वास के बिना संभव नहीं.

एक दिन मैंने कर ही लिया उस पर विश्वास.

क्योंकि मैंने कर लिया था उससे प्यार !

प्यार होता भी कैसे बिन विश्वास ?

विश्वास ने धीरे–धीरे समर्पण सिखाया.

समर्पण के आते ही प्यार परिपूर्ण होना चाहा ?

और तभी अचानक हुआ विश्वासघात !

मैंने जो किया था विश्वास.

विश्वास से ही मिलकर बना है विश्वासघात.

उस विश्वासघात के आघात से,

ह्रदय हो गया है इतना विदीर्ण.

कि अब किसी पर विश्वास करने की

सोचकर ही कांप उठती है रूह .

न करता विश्वास न होता विश्वासघात. 

ईमेल-पवनतिवारी@डाटामेल.भारत



          

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