वक्त है बादशाह बाकी मोहरे सभी.
उसकी चाहत के अनुसार सब चल रहे.
वक्त तो वक्त है उससे क्या उलझना.
जितना भी हो सके कर्म करते रहें.
कल तलक जो खुले आम थे गरजते.
आज पिंजरे में वो ही सफ़र कर रहे.
जिसको वो देखना चाहते थे नहीं.
संग उसके ही वो अब सफ़र कर रहे.
हाथ जिससे मिलाना गँवारा न था.
आज उससे ही वो हैं गले मिल रहे.
वक्त का फेर है वक्त ही है खुदा.
नासमझ हैं वो जो खुद ख़ुदा बन रहे.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें