यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 9 अक्तूबर 2016

संइयाँ मोरे गइनैं परदेस


अवधी रचना
          

बथुवा के साग बनाइब तs केके खियाइब हो.
संइयाँ मोरे गइनैं परदेस तs केके खियाइब हो.


उखुडी कs रस पेरवाइब घुघुरी बनाइब तs केके खियाइब हो.
संइयाँ मोरे गइनैं परदेस तs केके खियाइब हो.

चन्ना जs हम खोंटवाइब,साग बनवाइब तs केके जेंवाइब हो.
संइयाँ मोरे गइनैं परदेस तs केके खियाइब हो.

जाड़ा में ठरी जब रजाई,औ गोड ठराई न हो.
संइयाँ मोरे गइनैं परदेस तs केकरे में गोडवा सटाइब हो.

मुआ चिरई मुआ-मुआ गाई तs मन मोर डेराई न हो.
संइयाँ मोरे गइनैं परदेस तs केके गोहराइब हो.


होली में सब फगुआ जs गाई औ रंग बरसाई न हो.
संइयाँ मोरे गइनैं परदेस तs केके हम रिझाईब हो.

दिन- राति खइरि मनाई, तs देवी के पुजाई न हो.
सईंयां मोरे चलि आवें कुशल दुआर,
तs भरि हिक गाई न हो.

poetpawan50@gmail.com
सम्पर्क -7718080978

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