यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 18 जून 2016

कविता नहीं पढ़ते लोग

कविता नहीं पढ़ते लोग

कविता नहीं पढ़ते लोग

क्योंकि कविता पढ़ना मनुष्य बनने की प्रक्रिया है.
कविता में होता है जीवन , सम्वेदना , दया ,
मनुष्यता का गाढ़ा इतिहास , एक जीवंत चेतना
जीवन की एक पूरी प्रकृति , क्षमा और प्रेम

कविता नहीं पढ़ते लोग

क्योंकि कविता पढ़ते – पढ़ते मनुष्य बनने का डर होता है .
कविता गढ़ों, आडम्बरों ,पूर्वाग्रहों ,पाषाणों को ध्वस्त कर
पनपाती है  कोमल जीवन की सम्भावना , बताती है जीवन के मायने ,
कविता में होता है जीवन का भूगोल और विज्ञान


कविता नहीं पढ़ते लोग

क्योंकि बड़ी मुश्किल से प्रकृति के विनाश पर , पाषणों के नगर के नगर बने हैं
 बड़ी मुश्किल से मनुष्य जानवर बना है , स्वतंत्र से स्वच्छंद बना है ,
  सम्वेदना से पाषाण बना है , प्यार से छूटकर बाज़ार बना है .
  उसको और आगे बढ़ना है. उसे रोबोट बनना है.

कविता नहीं पढ़ते लोग

क्योंकि कविता पढ़ने से मनुष्य बनने की सम्भावना हमेशा बनी रहती है .
कविता रोबोट बनने के सपने को तोड़ सकती है .
 पीछे जाने और फिर से मनुष्य बनने का ख़तरा उठाने से डरते हैं.

कविता नहीं पढ़ते लोग

poetpawan@gmail.com

3 टिप्‍पणियां:

  1. कविता में संवेदना है ,
    पर कविता पढ़ने के लिए भाषा समझना जरूरी है।
    हो कर अब मजबूर
    लोग अपनी भाषा से ही जा रहे हैं दूर ।
    भाषा जे रही है व्यवहार से,
    व्यापार से, हमारे जीवन संसार से।
    यह प्रमुख वेदना है।

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  3. कविता में संवेदना है ,
    पर कविता पढ़ने के लिए भाषा समझना जरूरी है।
    हो कर अब मजबूर
    लोग अपनी भाषा से ही जा रहे हैं दूर ।
    भाषा जा रही है व्यवहार से,
    व्यापार से, हमारे जीवन संसार से।
    यह प्रमुख वेदना है।

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