आप ने बारिश, बरसात, बर्षा
की
अनेक लुभावनी और सावन,मेघ–मल्हार,काले
बादल,
बरखा बहार,मौसम की फुहार जैसी
श्रृंगार
और प्रेम की कवितायेँ पढ़ी
होगी,
सावन , बारिश, यौवन और
प्रसन्नता की सुन्दर रचनाएँ
देखी होंगी.
पर मैंने एक दूसरी बारिश को
देखा है
निर्दयी और बदसूरत...
क्या आप ने देखा है...
यदि नहीं तो आप बारिश को
ठीक से नहीं जानते
मैंने परसों सड़क के किनारे पत्थर
काटने वाली
औरत के घर निर्दयी बारिश को देखा
टाट की छत से उसके चूल्हे
और भात में
बेरहमी से टपकी नहीं, बरसी थी,
नीचे से भी जबरदस्ती घुस
आयी थी,
फटी चटाई और उस पर सोया
उसका दो साल का बेटा ,
दोनों को जबरदस्ती गीला कर
आई थी,
भात बिना पके खद्बदा कर मर
गया,
चूल्हे की आग कब चल बसी
किसी को ध्यान नहीं रहा
पूरी रात पत्थर काटने वाली
उस औरत ने
झोपड़े के कोने में दो साल के दूधमुहें बेटे को
लेकर
खुली आखों में टिप-टुप के डर के बीच पूरी रात
गुजार दी.
क्या आप पत्थर काटने वाली उस औरत के घर की
निर्दयी बारिश से मिले हैं
, अगर नहीं...
तो आप ठीक से बारिश को नहीं
जानते
आप ने कोठी की दालान में साहब
को भरी बरसात में
चाय की चुस्की और बरसात को
निहारते हुए कई बार देखा होगा
पर क्या सड़क के उस पार फटे
कपड़ों ,
गीले और सीलन से भरे झोपड़े
के द्वार पर कांपते
नौनिहालों से मिले हैं
जिनके फटे कपड़े के आख़िरी हिस्से से
जबरदस्ती बदरंग बारिश टपकती
है ,
अगर नहीं तो आप ठीक से
बारिश को नहीं जानते,
पगला काका को आप जानते हैं ?
पिछली गर्मी में किये थे घरभोज
धूमधाम से भुलई काका
बनवाये थे, नया मकान
बहू–बेटे सब सहर से घर आये
थे
एक दिन बड़े प्यार से आयी
बारिश
भुलई काका खुसी से गये सहर,
लाने धान का उन्नत बीज
अगले दिन लौटे सहर से गाँव
के लिए
पर अब वहां गाँव नहीं, दलदल
और कुछ निशान थे.
अब वहां अधनंगे धोती पहने
सिर्फ पगला काका घूमते हैं
अगर आप उस निर्दयी बारिश से
नहीं मिले...
तो आप बारिश को ठीक से नहीं
जानते ....
बहुत उम्दा लेख है !
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