यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

पत्रकारिता को मीडिया कहकर लज्जित न करें

मीडिया और पत्रकारिता के अंतर को जाने

मित्रों आज पत्रकारिता शब्द के पर्याय, विकल्प या पत्रकारिता के स्थान पर एक दोयम दर्जे के औपनिवेशिक शब्द मीडिया ने हथिया लिया है.पत्रकारिता देशज व पवित्र शब्द है.पत्रकारिता ने देश की स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय व उत्थान में अप्रतिम भूमिका निभाई है किन्तु आज मीडिया के नाम पर पत्रकारिता को भी अपशब्द, अपमान व उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा हैं इसका मीडिया से सीधे कोई लेना देना नहीं है. 15 वर्ष पहले अधिकाँश लोगों से लिए मीडिया अप्रचलित शब्द था हाँ जब से टेलीविजन पत्रकारिता मुखर हुई . मीडिया शब्द उससे चस्पा हो गया या कर दिया गया. पत्रकारिता को औपनिवेशिक भाषा में जर्नलिज्म कहते हैं न कि मीडिया.
आइये मीडिया शब्द की स्पष्टतापूर्वक विवेचना करते हैं. मीडिया शब्द अंग्रेजी भाषा का शब्द है इससे मिलते -जुलते अनेक शब्द हैं आप इन शब्दों को इनके रिश्तेदार भी कह सकते हैं इन शब्दों को आपने अक्सर सुना भी होगा जैसे - हिन्दी मीडियम, मीडिएटर ,मिडिल मैंन या मिडिल ईस्ट ये सारे शब्द मीडया से ही निकले हैं या सुविधानुसार दूसरे शब्दों के साथ जोड़ दिए गए हैं या यूँ कहें उसी के रिश्तेदार हैं.
मीडिया का अर्थ 'माध्यम' होता है . हिन्दी मीडियम - हिन्दी माध्यम, मीडिएटर - मध्यस्थ या बिचौलिय, मिडिल मैन - बिचौलिया या बीच का आदमी, मिडिलईस्ट- मध्यपूर्व , कहीं से भी इस शब्द व इसके रिश्तेदारों का पत्रकारिता से कोई सम्बन्ध नहीं हैं. उपरोक्त उदाहरणों से ये स्पष्ट हो जाता है इसका सम्बन्ध जोड़ने से , सहयोगी शब्द है .अकेले इसका अधिक महत्व नहीं है ,परन्तु जब ये किसी के साथ जुड़ जाता है तो महत्वपूर्ण हो जाता है. मध्यस्थ या बिचौलिये का महत्व तभी होता है जब वो दो लोगों के बीच होता है. अन्यथा शून्य है वो. उसे महत्व के लिए कम से कम दो लोगों का साथ चाहिए . वो बुराई , चुगली, सौदा, समझौता लड़ाई या और कुछ तभी करा सकता है जब कम से कम उसे दो लोग मिलें . इसके लिए अपने यहाँ प्रचलित देशज शब्द है ' ''दलाल'' . समय के साथ शब्द बदलते गये पर अर्थ नहीं बदला जैसे दल्ला से दलाल आगे ब्रोकर, आगे कंसल्टेंट्स, और बड़े स्तर पर ''लाबिस्ट'' जैसे नीरा राडिया. अर्थात मीडिया का मतलब बीचवाला अर्थात दलाल , सूचनाओं की दलाली करने वाले आधुनिक दलाल और आप इन बीचवालों को पत्रकार मान बैठे हैं पहले ये सूचना देने का कारोबार करते थे पर उसमें इन्हें ज्यादा फायदा नहीं था सो इन्होनें ख़बरों का कारोबार कुछ दिन किया .इन्हें और मुनाफ़ा चाहिये था तो ये दो कदम और बढ़कर ख़बरों की दलाली का काम शुरू किये अर्थात ख़बरें गढ़ने का धंधा और भयानक बदबू यहाँ से शुरू हुई . धंधे में मुनाफे के लिए धर्म , जाति, देश जो भी काम का हो बेच रहे हैं क्योंकि सच ये है कि देश इनका तो है नहीं .जीन्यूज़ और इण्डिया टीवी जैसे 2 एक चैनलों को छोड़कर अधिसंख्य के मालिक विदेशी हैं और फिर देशी हो या विदेशी सब बिचौलिये हैं. पत्रकारिता तो अब नीलकंठ पक्षी हो गया है जो बड़ी मुश्किल से दिखाई देता है.
पत्रकारिता दर्पण .है जो मूल पत्रकारिता से जुड़े है वे प्रेस में छपाई के समय प्लेट देखे होंगे वहां ''मिरर इमेज'' बोलते हैं शब्द उल्टे लगते हैं पर छपकर सीधे आते हैं. पत्रकारिता शुद्ध घी है उसमे मिलावट से अनर्थ हो जायेगा. पत्रकारिता मुस्लिम नहीं है,पत्रकारिता दलित नहीं है, पत्रकारिता सेकुलर नहीं है, पत्रकारिता हिन्दू नहीं है, पत्रकारिता धंधा नहीं है. इसे बचाइए... देश में बाघ जितने बचे हैंउससे कम पत्रकारिता बची है इसलिए इसके लिए भी आवाज़ उठाइए. पहले पत्रकारिता को बचाइए फिर बाघों को पत्रकारिता बचा लेगी . पवन तिवारी के ब्लॉग '' चवन्नी का मेला ''से साभार

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