मेरा सविनय निवेदन था ठुकरा दिया
व्यंग्य का उसमें छोटा सा था पुट दिया.
दूसरे द्वार पर तुम भी कर जोड़े थे
तुमको उपहार उपहास का था दिया
तुम किसे चाहते गौण सा प्रश्न है
चाहता कौन तुमको महा प्रश्न है
छोड़ अवगुण तुम्हारे जो गुण देखे सब
उसको आदर दो उत्तर यही प्रश्न है
लोग पछताए कितने है गणना नहीं
आये अवसर तो कथनों में पड़ना नहीं
कान धरना नहीं जग की बातों में तुम
सुनना अंतः की पर जग से लड़ना नहीं
प्रेम वाले को देना न अपमान तुम
हल नहीं है अगर देना सम्मान तुम
इक नशा रहता है ऐसे उर में सदा
सो बिना सोचे ना छेड़ना तान तुम
पवन तिवारी
सम्वाद - ७७१८०८०९७८