जब से ठाकुर हुए संत हैं
हो गये कितने भदन्त हैं
चोला बदले वही मन रहा
बुद्ध क्या बुद्ध के अंत
हैं
मूल का ना हुआ अनुसरण
वेश - भूषा का केवल वरण
इसलिए बद - से बदतर हुए
छद्म सा हो गया आवरण
जो भी प्रतिशोध में होता है
श्रेष्ठता को वही
खोता है
श्रेष्ठता के लिए करता जो
बीज वो तो नया बोता है
खुद को जो आंकता रहता है
लक्ष्य को झाँकता रहता है
सैम - विषम में रहे एक सा
उसको युग माँगता रहता है
पवन
तिवारी
०८/०३/२०२३
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