यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 4 जून 2022

ज़िन्दगी दर्द है दवाई है

ज़िन्दगी  दर्द  है   दवाई  है

बहुत अच्छी  बुरी जुदाई है

 

मौत को लोग  दोष  हैं  देते

ज़िन्दगी में अधिक बुराई है

 

मौत का खेल कुछ क्षणों का है

ज़िन्दगी  की  बड़ी  लड़ाई है

 

मौत सम्मान माँ क्या जाने

ये जीवन की सब कमाई है

 

वैसे दीवारें गिरती रहती हैं

ज़िन्दगी  ने मगर उठाई है

 

ज़िन्दगी तू बहुत तिकड़मी है

हँसते  हँसते   करे  रुलाई  है

 

जाते जाते रुलाती है सबको

बहुत सुंदर  सी  बेवफाई है

 

ज़िन्दगी को भला कहूँ क्या मैं

पसंद   सबको  ये  मिठाई  है

 

ज़िन्दगी  कितने  रंग  हैं   तेरे

लगती प्यारी कभी कसाई है

 

तुझको  देखा  कई  तरह  से है

किन्त्तु हर बार मुँह की खाई है

 

तेरा  कर्जा  भी  बड़ा है आला

एक  बस  मौत ही भरपाई है

 

तू तो घर वाली मौत की ठहरी

तेरी  उसके  ही  संग बिदाई है   

 

पवन तिवारी

२७/०७/२०२१

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