उर
में भरा प्रेम है चढाऊं किसपे
कोई
नेह पात्र मिले जाऊं उसपे
चारो
ओर छल हवस के पात्र बिखरें हैं
कोई
मिले ऐसा लुट जाऊं जिसपे
प्रेम
के ही नाम पे पहले छले गये
फँस
करके उसमें अच्छे
भले गये
प्रेम
प्रेम करने से अब तो है डरता
पर
स्वाभाव जाये कहाँ सो गले गये
प्रेम
के बिना है
ये जीवन कैसा
बिन
आत्मा के बदन हो जैसा
प्रेम
में भी घुल गया बाज़ार का नशा
प्रेम
पर पड़ने लगा
भारी पैसा
प्रेम
हो गया जैसे
गूलर का फूल
भटक
रहा नहीं मिलता
है कूल
बदन
ही बदन खेल दिखे चहुँ ओर
कुछ
लोग कहते
हैं प्रेम जाओ भूल
पवन
तिवारी
११/०८/२०२१
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