यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 8 जून 2022

उर में भरा प्रेम है

उर में भरा प्रेम है चढाऊं किसपे

कोई नेह  पात्र  मिले जाऊं उसपे

चारो ओर छल हवस के पात्र बिखरें हैं

कोई मिले ऐसा लुट जाऊं जिसपे

 

प्रेम के  ही  नाम  पे  पहले छले गये

फँस  करके  उसमें  अच्छे  भले गये

प्रेम प्रेम करने से  अब  तो है डरता

पर स्वाभाव जाये कहाँ सो गले गये

 

प्रेम  के  बिना  है  ये  जीवन  कैसा

बिन  आत्मा   के  बदन   हो  जैसा

प्रेम में भी घुल गया बाज़ार का नशा

प्रेम  पर  पड़ने  लगा  भारी  पैसा

 

प्रेम  हो  गया  जैसे  गूलर  का फूल

भटक  रहा  नहीं   मिलता  है कूल

बदन ही बदन  खेल  दिखे चहुँ ओर

कुछ लोग  कहते  हैं प्रेम जाओ भूल

 

पवन तिवारी

११/०८/२०२१ 

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