देखो कैसे है
मेरा घर उजड़ा
वक़्त ने इस तरह किया झगड़ा
मेरा अपना ही जलाया मुझको
कहने लायक भी नहीं ये लफड़ा
तुम गयी याद नहीं जाती
है
दर्द का एक घर
बनाती है
जाने का प्रश्न कोई उठता नहीं
जैसे मेरे ज़िन्दगी
की बाती है
अब है क्या जीना और मरना है
यादों से
दर्द-ए-इश्क करना है
आज में अब कभी नहीं रहना
अतीत से ही
ज़ख्म भरना है
अब तो दिन में भी सपन आयेंगे
हँसते - हँसते कभी
रुलायेंगे
सारे सपनों में फक़त तुम होगी
गीत फिर से
तुम्हें सुनायेंगे
पवन तिवारी
२३/०९/२०२१
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