यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 25 जून 2022

देखो कैसे है

देखो  कैसे  है  मेरा  घर उजड़ा

वक़्त ने इस तरह किया झगड़ा

मेरा अपना ही जलाया मुझको

कहने लायक भी नहीं ये लफड़ा

 

तुम गयी  याद  नहीं  जाती  है

दर्द  का  एक   घर  बनाती  है

जाने का प्रश्न कोई  उठता नहीं

जैसे मेरे  ज़िन्दगी की बाती है

 

अब है क्या जीना और मरना है

यादों से  दर्द-ए-इश्क करना है

आज  में  अब कभी नहीं रहना

अतीत  से  ही  ज़ख्म भरना है 

 

अब तो दिन में भी सपन आयेंगे

हँसते - हँसते   कभी  रुलायेंगे

सारे सपनों में फक़त तुम होगी

गीत  फिर  से  तुम्हें   सुनायेंगे

 

 

पवन तिवारी

२३/०९/२०२१

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