सपनों
के कुछ दीप जले
हैं
कुछ
पाषाण अभी पिघले हैं
शुभता
का संकेत तो है ये
इस जाड़े में बर्फ
गले हैं
कई बार तो हाथ मेल हैं
कई
बार खुद को ही खले हैं
कई बार थक जाने पर भी
चल
चल के कई कोस चले हैं
कुछ
जो उम्र से पहले ढले हैं
ढलते
ढलते भी निकले
हैं
कुछ
छोटी के पास पहुँचकर
अकस्मात
यूँ ही फिसले हैं
जीवन
है तो सिले-गिले
हैं
कुछ अपनों
से गए छले हैं
कुछ
का जीवन रहा अजूबा
गैरों
के जो यहाँ पले हैं
कई
बार दिन सुख के टले हैं
कई
बार गिरकर संभले हैं
जीवन
तो आशा से चलता
रातों में भी कुछ उजले हैं
कितनों
के अभिलषित फले हैं
अधिक
नहीं पर कुछ तो भले हैं
संघर्षों से ही बनता जीवन
दुःख
वाली भी कुछ गज़लें हैं
कई
बार दिल भी दहलें हैं
कई बार हिय
भी मसलें हैं
फिर
भी प्यार किया है उर ने
छलने
वाले फिर भी छले हैं
पवन
तिवारी
०४/०५/२०२१
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