प्रेम में जब समर्पित कोई होता है
सच कहूँ अपना विश्वास वह वो बोता है
अपना ही प्रेम जड़ काटने जब लगे
ऐसे में उर सहित रोम भी रोता है
प्रेम होना भी जीवन में इक पर्व है
कुछ के जीवन में बस प्रेम ही सर्व है
प्रेम के नाम पर कुछ बहुत मिलता है
प्रेम सच्चा मिले यह भी इक गर्व है
प्रेम का बिछड़ना इक दुखद बात है
प्रेम में झूठ स्व से बड़ा घात है
प्रेम में छल से सबको बचाएं प्रभु
ऐसे प्रेमी की तो जिंदगी रात है
आज के दौर में प्रेम भी स्वार्थ है
अपना हित ही बड़ा सबसे परमार्थ है
प्रेम में मिलनी दुर्लभ सुभद्रा यहां
अब ना मोहन कोई ना कोई पार्थ है।
पवन तिवारी
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