स्मृतियों
का कोलाहल है
हिय
का हिय भी बड़ा विकल है
आज
सुना फिर हिय का जाना
नैन
झरें झरना छल - छल है
शब्द
भी काँप रहे
हैं सुनकर
रह
गये सब अपना सर धुनकर
सारा
कुछ इतिहास हो
गया
उलझ
रहा मन स्मृति बुनकर
प्रिय जन एक - एक कर जाते
उर में उतने दाग हैं आते
इस उर को भी मर जाना है
क्या
हम फिर उससे मिल पाते
मेरे
दुःख संघर्ष के साथी
खुशियों में जैसे बाराती
मृत्यु
तेरा जबरन ले जाना
ये कायरता नहीं
सुहाती
फिर भी हम संघर्ष करेंगे
महारथी
की भांति लड़ेंगे
धर्मराज
भी विचलित होंगे
तुझे मारते हुए मरेंगे
मर
के फिर ज़िंदा होंगे हम
देख तुझे
होंगे केवल गम
हम मनुष्य
देवों से जिद्दी
अमर रहेंगे
कीर्ति के दम
पवन
तिवारी
०९/०४/२०२१
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