प्यार
था जी प्यार में
अरमान था
कुछ
दिनों का क्या पता मेहमान था
सब गुमाँ
मिट्टी में उस दिन मिल गये
जब से जाना
झूठ का सामान
था
उसको
केवल धन के प्रति सम्मान था
उस बहाने मेरा थोड़ा मान था
धन
के जाते भेद सारा
खुल गया
वो
था शातिर मैं फ़क़त अनजान था
जिस
को दिल ने मान रखा शान था
अधर
कहते जो गुणों की खान था
वक़्त
बदला हाथ क्या खाली हुए
जान
था जो अर्थ उसकी जान था
प्रेम
हिय का वो भी इक मेहमान था
मुझको
इसका लेश भर ना भान था
छल
कहूँ या भाग्य इसको क्या कहूँ
प्रेम
का इक दुःख भरा आख्यान था
पवन
तिवारी
०९/०४/२०२१
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