जिस पर बीत रही हो जाने
बाकी तो केवल बस माने
दुख स्थाई साथी फिर भी
व्याकुल हैं सब सुख को पाने
ढंग ढंग के दुख बीते हैं
रोज रोज मर कर जीते हैं
वैसे तो इंकार ही करते
मुफ्त की तो सब ही पीते हैं
इंद्रधनुष से अधिक रंगीले
मानुष सबसे अधिक सजीले
जो कठोर हिय के लगते हैं
अंदर से हैं गीले - गीले
कितनी कला मनुज के अंदर
लगता सच वंशज हैं बंदर
तिकड़म उछल कूद में आगे
फिर भी मनुज सभी से सुंदर
पवन तिवारी
२५/०३२०२१
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