पहले मैं क़िताबें पढ़ता था तो ,
कई
बार समझ में नहीं आती थीं;
और
फिर तुम मिली !
तुम
में इतना कुछ था कि
तुम्हें
ही पढ़ने लगा !
अब
लगता है कि
दुनिया
की सारी
ख़ूबसूरत
क़िताबें तुम में हैं !
कभी-कभी
भाव आता है कि -
पूछूँ
- यह क्या है ?
पुनः
ध्यान आता है कि –
आज-कल
किसी किताब को
पढ़ते
समय समझने की
आवश्यकता
नहीं पड़ती !
इसके
साथ ही बरबस
अधर
मुस्करा देते हैं और मैं,
किसी
फूलों वाली दुनिया में
खो
जाता हूँ .
पवन
तिवारी
०५/०४/२०२१
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