ये दुबकी
दुबकी धूल है.
ये
सहमा- सहमा फूल है
ये
दूब शर्माती हुयी
चुभती
हवा ज्यों शूल है
ये शीत का संताप है
सबका
ढला परताप है
गर्मी
बहुत है उछलती
पर
जाड़ा सबका बाप है
गर्मी सभी
की चाह है
गद्दा-
रजाई राह है
जाड़े
से सब बचते फिरें
पर
पूस की क्या थाह है
छूने से
पानी सब डरें
और
आग में दिखते हैं रब
शीत
की महिमा है न्यारी
काँपते रहते
हैं लब
पवन
तिवारी
२६/१२/२०२०
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