यदि
उन कविताओं में तुम नहीं हो
तो,
तुम कवि नहीं हो
जिन
पीड़ाओं और सम्वेदनाओं को
कविता
कह, शब्दों के पगहे में
बाँध
रहे हो !
अगर
वे तुम्हारी नहीं हुई हैं
तो,
तुम कवि नहीं हो !
शब्दों
से बघार रहे हो
यदि
तुमने उसके स्नेह को छुआ नहीं है
यदि
तुमने उसे देखा नहीं है
मात्र
कल्पना की है
तो,
तुम कवि नहीं हो !
शब्दों
और वाक्यों के मिलाप से
बने
गुलदस्ते को यदि तुम
कविता
समझते हो
तो,
तुम कवि नहीं हो !
तुम
मुझसे असहमत हो सकते हो
ख़ारिज
कर सकते हो मेरे विचारों को
फिर
भी मैं कहूँगा
तो
तुम कवि नहीं हो !
पवन
तिवारी
०९/०१/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें