लगता जैसे वक्त है ठहरा
धूप को ढकने लगा है कुहरा
सामने है आदमी न सुनता
ऐसे जैसे लगता बहरा
शीत का मौसम लगा है आने
ओस की बूँदें लगी हैं छाने
राज साल स्वेटर का आया
सूर्य के दिन अब लगे हैं जाने
मटर तो हँसके लगी फुलाने
बथुआ भी लगा है बौराने
चने के साग का भी क्या कहना
गन्ना स्वाद लगा बरसाने
इन दिनों आग का ही जलवा है
ठंड से काँप रहा
तलवा
है
टोपी का भी भाव बढ़ा है
और रसोई में हलवा है
आलू में आ गई हरियाली
भाती ख़ूब चाय की प्याली
पकौड़ियों से प्रेम बढ़ा है
समोसे की भी है दिवाली
रजाई का भी राज चला है
भाव लकड़ियों का भी बढ़ा है
धूप छाँव को तरसाती है
सूर्य भी थोड़ा जल्द ढला है
आकर जाड़ा बदल है देता
खान पान का मजा है देता
खाने का शौक़ीन है जाड़ा
गर्म चीज को भाव है देता
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
१७/१०/२०२०
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