अच्छे लोगों की
यादें भी थाती होती हैं
उनकी बातें प्रेरक
दीपक बाती होती हैं
स्वाभाविक लेखक जो
लिखते हिय से लिखते हैं
उनकी लेखनी पढ़ो तो
जैसे पाती होती है
लोग यहीं रहते हैं
केवल देह चली जाती है
कर्मों के आधार पे
उनकी कीर्ति छली जाती है
मरने के ही बाद
व्यक्ति का मूल्याँकन होता है
विस्मृत करता है जग
या फिर याद पली जाती है
जीते जी इतिहास
पुरुष बन जाना दुर्लभ होता है
जितना पाता है उतना
ही जाते - जाते खोता है
भौतिक सारा मिट जाता
है एक कीर्ति जो टिकती है
बिना स्वार्थ के जग
में किसको कौन कहाँ तक ढोता है
याद से बोना, जो भी
बोना, जो बोता वो पाता है
वैसा ही बनता मन
उसका जैसा अन्न जो खाता है
चरित बचाना, चरित
बढ़ाना, अपने सद्कर्मों पर है
बहुतों की निंदा
होती है, कम को ही जग गाता है
( प्रिय मित्र
स्व.राधाकृष्ण चतुर्वेदी ‘अबोध’ जी को याद करते हुए)
पवन तिवारी
संवाद- ७७१८०८०९७८
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