यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

सबसे पहले खुद का जाना

सबसे पहले  खुद का जाना

प्रतिभाशाली  हूँ  यह माना

फिर ठोकर और दुत्कारों को

किया  ठिकाने  मैंने  ठाना

 

लोगों  ने   सौ  बार गिराया

खुद  को सौ सौ  बार उठाया

जिस–जिस ने अपमान किया था

उस - उस  ने सम्मान कराया

 

पागल कितनों को लगता था

सपनों में भी  मैं जगता था

मन की  सुनता  बढ़ता रहता

कभी - कभी खुद को ठगता था

 

पर अपनी धुन का पक्का था

घूम  रहा  मेरा  चक्का  था

था अगाध विश्वास स्वयं पर

मैं अपनी जिद का पक्का था

 

इक दिन उससे ज्यादा मिल गया

तन मन दोनों संग में खिल गया

श्रम  विश्वास  की  जीत हुई थी

निंदा  का  मस्तिष्क  हिल  गया

 

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

४/०९/२०२०

 

  

 

 

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