सबसे पहले खुद का
जाना
प्रतिभाशाली हूँ यह
माना
फिर ठोकर और
दुत्कारों को
किया ठिकाने
मैंने ठाना
लोगों ने सौ बार
गिराया
खुद को सौ सौ बार
उठाया
जिस–जिस ने अपमान
किया था
उस - उस ने सम्मान कराया
पागल कितनों को लगता
था
सपनों में भी मैं जगता था
मन की सुनता
बढ़ता रहता
कभी - कभी खुद को
ठगता था
पर अपनी धुन का
पक्का था
घूम रहा
मेरा चक्का था
था अगाध विश्वास
स्वयं पर
मैं अपनी जिद का
पक्का था
इक दिन उससे ज्यादा
मिल गया
तन मन दोनों संग में
खिल गया
श्रम विश्वास की जीत
हुई थी
निंदा का मस्तिष्क
हिल गया
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
४/०९/२०२०
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