यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 2 जून 2020

बीतना


मैं चाहता हूँ ज़िन्दगी
मेरे साथ बीते,
मुझसे बतियाते हुए ;
मेरा और अपना
सब कुछ साझा करते हुए.
किन्तु वह कट रही है,
किसी और के साथ !
और मैं अकेले बीत रहा हूँ.
यह अकेले बीतना ही
ज़िंदगी की त्रासदी है.
और इससे बचते हुए 
बीतना सुखद ज़िंदगी.


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

पतझड़ में फूल


पतझड़ में भी फूल खिले हैं
जंगल में भी  मीत मिले हैं
कभी-कभी कुछ लोगों को तो
गैरों से  भी  गिले  रहे हैं

रोना भी  सुख दे जाता है
गैर से भी मरहम पाता है
कुछ भी हो सकता है यहाँ पर
ये भी जीवन कहलाता है

अपने  कभी   पराये   होते
अपनों में ही  खुद  को खोते
मरुथल में भी झील मिली है
अपनों  से  खा  धोखा रोते

जीवन       तो    बहुरंगा  है
जो   समझा   सो   चंगा   है
दिल की किया तो खुश रह लेगा
मान के चल   सब जग चंगा है

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८    

तुझको चाहा था


तुझको चाहा था तुझको चाहूँगा
पर  कोई  वादा  न निभाऊंगा
प्यार  होकर  भी  रहेंगे झगड़े
तेरी  तरह  तुझे   तड़पाऊंगा

प्यार कब  बार - बार होता है
दिल तो बस एक बार खोता है
खोते जो बार-बार दिल अपना
उनमें बस  काम-काम होता है

तेरी   चर्चा   करूंगा  कोसूँगा
तेरे धोखे को  जम के भोगूँगा
दर्द कविता में लिखके तुझपे मैं
खुद को मरने से  सदा  रोकूँग

रो  के  भी  तू रो न   पायेगी
होगी रुसवा  जहाँ भी  जायेगी
तेरे धोखे का फल मिलेगा तुझे
अपने दुःख हँसते  हुए गायेगी

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८