सबका था अधिकार मुझ
पर
मैं तो बस कर्तव्य था
खून मेरा पी करके
तरल वे
सबके लिए मैं द्रव्य
था
बड़ा था सो कर्तव्य
मेरा था
ना उनका
कोई कर्म था
स्वारथ सबसे बड़ा है
रिश्ता
इतना सा
बस मर्म था
इतना मर्म समझने में
बस
उम्र गयी
अच्छी ख़ासी
चखने को तब चला
जिंदगी
स्वाद मिला बासी – बासी
बासी खा के भी चलना
था
जीवन की
मज़बूरी थी
थोड़े – थोड़े
गले जा
रहे
ख़ुद से बढ़ रही दूरी
थी
मुझसे मेरे मित्र
सबका लो
अपने लिये प्रथम
जीना
कहीं भरोसे किसी के
रहना
अपने कपड़े खुद
सीना
करना पहला प्रेम
खुदी से
डरना तो ख़ुद से
डरना
अपनी शर्तों पर जिए
तो
होगा ख़ुशी - ख़ुशी मरना
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक –
poetpawan50@gmail.com
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