यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 3 मई 2020

कुछ जीते हैं दुविधा में


कुछ जीते हैं दुविधा में
कुछ जीते हैं सुविधा में
हम शब्दों के सहचर हैं
हम जीते हैं अविधा में

कुछ जीते  सम्बंधों में
कुछ जीते अनुबंधों  में
हम गीतों के साधक हैं
जीते  हैं  तटबंधों  में

कुछ जीते हैं अपनों में
कुछ जीते हैं सपनों में
हम तो अक्षर के अनुगामी 
जीते शब्दों के मपनों में

कुछ जीते हैं  अहंकार में
कुछ जीते हैं अलंकार में
वागेश्वरी के अनुचर हैं हम
जीते  उनकी  टंकार में 


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें