कुछ जीते हैं दुविधा
में
कुछ जीते हैं सुविधा
में
हम शब्दों के सहचर
हैं
हम जीते हैं अविधा
में
कुछ जीते सम्बंधों में
कुछ जीते अनुबंधों में
हम गीतों के साधक
हैं
जीते हैं तटबंधों
में
कुछ जीते हैं अपनों
में
कुछ जीते हैं सपनों
में
हम तो अक्षर के अनुगामी
जीते शब्दों के
मपनों में
कुछ जीते हैं अहंकार में
कुछ जीते हैं अलंकार में
वागेश्वरी के अनुचर
हैं हम
जीते उनकी टंकार
में
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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