यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 29 मई 2020

जान जाके भी नहीं जाती है


जान  जाके भी नहीं जाती है
देख  तस्वीर  लौट  आती है
बहुत से हुस्न  इधर  देखे हैं
बात तुझसी मगर न आती है

सोचता   हूँ  तुझे  भुला  दूँगा
सोचूँ फिर किसको मैं वफा दूँगा
वफ़ा की भी तो बड़ी किल्लत है
तुझमे ही खुद को मैं मिला लूंगा

तेरा जाना भी  कोई  जाना है
लगता है कल का ही बहाना है
खाके नखरे  गयी है  गुस्से में
खोजता  हूँ  तुझे  मनाना  है

खुद से मैं रोज झूठ  कहता हूँ
तेरी  यादों  में  रोज बहता हूँ
जाने दिल तू कभी  न आयेगी
फिर भी तुझको बसाए रहता है

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८       

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