सारी शेखियाँ बिखर
गयी.
सारी शोखियाँ गुम
गयी.
खोज रहे ज़िंदगी को
जाने किधर गयी.
अपने चले गये.
पराये चले गये
हम इधर उधर के चक्कर
में
न इधर गए न उधर
क्या करें ? क्या
कहें ?
कहता भी हूँ तो,
कोई बूझता नहीं है.
एक काल है जो सब
बूझता है.
उसको सब सूझता भी
है.
किन्तु कहता कुछ
नहीं
बस चुपचाप है.
उसके काले अधरों पर जो
अकेली मुस्कान ठहरी
है.
वह कहती है-
पहचानों निज को
हल तुम्हीं में है.
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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