यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

पहले मुझे लगा था


मैंने  किया वफ़ा तो  ये एहसान नहीं था !
वो निकली बेवफ़ा तो ये एहसान हो गया !!




पहले मुझे  लगा  था हाँ  मर ही  जाऊँगा
कुछ ही दिनों में हो न हो गुज़र ही जाऊँगा

फिर देखा  बेवफ़ाई  करके ख़ुश है वो बहुत
फिर सोचा हँसू क्यों दिखाऊं डर ही जाऊँगा

शौहर  को  कोसती  है  प्रेमी को  चूमती
अय्यारी सीख करके उस डगर ही  जाऊँगा

होकर  वो  खवातीन  गर  गुरुर  पाले है
हूँ मैं भी आदमी  कुछ तो कर ही जाऊँगा

घर से मेरे पहले बहुत कुछ और भी पड़ता
मयखाना भी पड़े है क्या मैं घर ही जाऊँगा

मुझसे किया निकाह मोहब्बत किसी से की
ये  खेल  खेलने  तेरे  शहर  ही  जाऊँगा

तुझसे किया था प्रेम तुझ पर ही मिटा था
अब कोई नहीं  मंजिल के दर ही जाऊँगा


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  


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