वर्षों पहले मैंने
लिखी थी एक कविता-
‘भूख ने मर कर बदला
लिया’
उसने अपनी निजता की
रक्षा के लिए
त्याग दिए थे प्राण
!
किन्तु, इस बार एक
भूख नहीं है,
हजारों, लाखों, शायद
करोंड़ों है
भूख से बड़ी निजता
शायद कुछ नहीं,
करनी होगी उसकी
निजता की रक्षा !
यदि हुई उसकी निजता
भंग
और खुल गया उसका भेद,
तो इससे बड़ा अनर्थ
कुछ नहीं होगा.
क्योंकि भूख काल से
भी
नहीं होती भयभीत !
जब वह बाहर आएगी,
हजारों,लाखों शायद
करोड़ों की संख्या में
तो मौत भी माँगेगी
जीवन की भीख
भूख से बढ़कर कोई
महामारी नहीं
क्योंकि भूख स्वयं
के सिवा
किसी को भी नहीं
पहचानती.
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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