पीड़ा में सुख देती
कविता
अन्धकार में जैसे सविता
समय के परे ले जाती ये
जान ही ले आगे की भविता
दर्द मेरा आक्रोश में सुलझा
हुआ तभी कविता का
जलसा
जब – जब भूखे पेट रहा मैं
तब छलका लेखन का कलसा
संघर्षों में ही लिखता हूँ
उसमें मैं खुद
दिखता हूँ
मेरे दुःख का औषधि लेखन
थोड़ा खुरदुरा सा दिखता
हूँ
कविता जैसे मृत्यु को डसना
काल के गाल पे खुद
को रचना
सबसे कठिन शब्द से मिलना
जैसे सुविधाओं
से बचना
इसका नाम क्यों अक्षर है
होता नहीं कभी क्षर है
वेदों ने भी गायी महिमा
इसीलिये प्रणवाक्षर है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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