यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 5 अप्रैल 2020

मेरे प्राण ने


मेरे प्राण ने मेरे  प्राण पर  ऐसा अस्त्र  चलाया
अस्त्र दिया था परम मित्र ने सुनकर धैर्य गंवाया
दोनों  मिल यूँ रूप  दिखाये तन की साधना का
प्राण हुए  भय से उड़ने को उर कम्पित घबराया

हिय से निकल प्रेम तब भागा फिसला बिखर गया
जिससे  प्रेम   वही  हत्यारा  देखा  अखर  गया
मूर्छित होकर गिरा  धरा पर  प्राण फँसा ग्रीवा पर
कातर नयनों से नीर ढले  यूँ  जैसे था  खर गया

कोई  अभिलाषा, अपेक्षा  जैसा  कोई  दुराव न था
रिश्ते में कोई दाग पुराना,पहले का कोई घाव न था
हाँ, निष्ठा का एक भाव  गहरे तल में चुप बैठा था
उसकी भी यूँ हत्या होगी आया कभी ये भाव न था

प्रेम में निष्ठा की हत्या ने मन की हत्या  कर डाली
हिय की गोद एक क्षण में ही नयन नीर से भर डाली
ग्रीवा में हैं प्राण सिसकते, मुक्ति, मुक्ति की नाद से
पावन  भावों  को  वासना  की चक्की  से दर डाली

मृत्यु से संघर्षरत जीवित बचने की आशा में ... यह रचना



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८




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