यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

जिसको वर्षों से चाहा था


जिसको वर्षों से चाहा था मैनें वह ही मेरी  डगर आ रहा है
दिल उछलने लगा है अभी से वो जो आता नज़र आ रहा है

चाह दिल से निकलती  अगर है चाह खुद ही चली आती है
जो बलन्दी लिए हसरतों में उनके घर तक सफ़र आ रहा है

ये पसीने  सजे हैं  जो  माथे  मेरे  मेहनत  के  हैं ताज़ सारे
इनको कहना महज मत पसीना इनसे महलों का डर आ रहा है

आके चौराहों पे सारे रिश्ते  अपने मतलब  की गाड़ी है ढूंढें
रिश्तेदारों की अटकी हैं सांसे सुन के रिश्ता नगर आ रहा है

मारने के लिए  जिसको  उसने  पवन  सौ पैंतरें आजमाये
लोगों को सामने देखकर करके बोला मेरा जिगर आ रहा है




पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें