जिसको वर्षों से
चाहा था मैनें वह ही मेरी डगर आ रहा है
दिल उछलने लगा है
अभी से वो जो आता नज़र आ रहा है
चाह दिल से निकलती अगर है चाह खुद ही चली आती है
जो बलन्दी लिए
हसरतों में उनके घर तक सफ़र आ रहा है
ये पसीने सजे हैं जो माथे
मेरे मेहनत के हैं
ताज़ सारे
इनको कहना महज मत
पसीना इनसे महलों का डर आ रहा है
आके चौराहों पे सारे
रिश्ते अपने मतलब की गाड़ी है ढूंढें
रिश्तेदारों की अटकी
हैं सांसे सुन के रिश्ता नगर आ रहा है
मारने के लिए जिसको उसने पवन
सौ पैंतरें आजमाये
लोगों को सामने
देखकर करके बोला मेरा जिगर आ रहा है
पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८
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