मेरे पास सुख के कई
साधन हैं.
किन्तु वही दुःख के
भी साधन हैं.
जब मैं दुःख को यूँ
ही धकियाकर
बढ़ जाता हूँ आगे ;
किसी मित्र से बातें
करने !
मुझे बातें करना सुख
देता है.
हाँ, यह सुख तब और
बढ़ जाता है,
जब सामने वाला
सुनने का भी सुख ले
रहा हो !
मुझे प्रेम करने
जैसा सुख मिलता है !
जब मैं किसी को
सुनते हुए
ये महसूस करता हूँ
कि बस !
इसका बोलना कभी खत्म
न हो ;
हाँ, पर कई बार
जब अपनी इच्छा के
विरुद्ध
बोलना या सुनना पड़ता
है,
तब मुझे कहीं दूर
भाग जाने का मन करता
है.
जहां मेरे सिवा सिर्फ प्रकृति हो !
यदि ऐसा नहीं होता
तो,
नहीं कर सकता अपनी
पीड़ा की व्याख्या !
हाँ, इसे पढ़कर जरुर
आप को अपने
कई ऐसे सुख और दुःख याद
आये होंगे !
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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