कहो कुछ तो कुछ
अरमान निकले
अपने अंदर का भी बियाबान निकले
माना कचरा
ही सही देखो
तो
क्या पता हो कि
सामान निकले
आज - कल आकलन भी
जोखिम है
चीन समझा
था जापान निकले
कृपण समझे
थे जिन्हें वर्षों से
दोस्त बनते ही वे
आसमान निकले
बिना जाने ही फतह को निकले
सामने देखा तो मेरी जान निकले
गरीब थे
मगर वक्त पर वो
दोस्ती की वे शान
निकले
पवन अंदाज
लगाया न करो
भूसी समझे थे जिसे
धान निकले
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
पवनतिवारी@डाटामेल.भारत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें