सरसों फूली मटर फूली
मूली औ गाजर भी फूली
गेहूँ अलसी चना के संग
कृषि की हर गली फूली
शीत की चढ़ उमर आयी
गांव ने ओढ़ी रजाई
मोती बनकर पातों पर फिर
ओस सुंदर मुस्कुरायी
कान पर गमछे बंधे
रात में कंबल सजे
हो गई चाँदी अलाव की
प्रेमी आपस में नधे
मुँह से निकले भाप है
सबकी आशा ताप है
सूर्य दिखते ही नहीं
जैसे कोई शाप है
जो भी खायें सब पचे
जो भी पहने सब जँचे
कोट,स्वेटर और मफलर
बदन पर सब ही फबे
झुक गई हैं जवानियाँ
धुंधली सी हैं कहानियाँ
काँप - काँप अधर बोले
चाय की दो प्यालियाँ
गरीब की दुश्वारियाँ
ठिठुरती किलकारियाँ
मुँह ढके काँपे कलावती
शीत की मनमानियाँ
शीत को ठेंगा दिखायें
शीत को बच्चे चिढ़ायें
फर्क उन पर कुछ नहीं है
खेलते खाते ही जायें
बच्चों से है शीत डरती
बूढ़ों पर है बहुत मरती
है बहुत ही घाघ सर्दी
चलती है उसकी ही मर्जी
शीत, जाड़ा, ठंड, सर्दी
तू रहे तो कम हो गर्दी
क्या कहें तेरी अदा को
बुरी, अच्छी, प्यारी,
सर्दी
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक - Poetpawan50@gmail.com
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