यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 15 सितंबर 2018

जेठ दोपहरी सा मैं हो गया था


























जेठ  दोपहरी सा  मैं हो गया था
उखड़ा – अकड़ा सा मैं हो गया था
तुम क्या आयी सावन बन करके
मैं सावन  के  जैसा हो गया था

जीवन में उल्लास आया था
उर ने उर का गीत गाया था
सब कुछ इन्द्रधनुष सा जीवन में
जो ना भाये वो सब भाया था

कैसे से मैं कैसा हो गया था
पहले से कुछ वैसा हो गया था
खुश था इतना बदला कुछ फिर भी
दीवानों के जैसा हो गया था

प्रेम की महिमा सबसे न्यारी है
प्रेम कामना  सब  पे  भारी है
प्रेम का स्वाद चखा जिसने जग में
उसकी बात तो सबसे निराली है


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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