यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 1 अगस्त 2018

ख़ास आम सबके













ख़ास आम सबके दुखों का घड़ा हूँ मैं
क्या कहूँ नयी उमर का अब्बा हूँ  मैं

सुनके  सभी के ग़म दीवार हो गया
खुशियों के नाम  पे झूठी अदा हूँ मैं

अन्दर है सब खराब मगर ठीक ही कहूँ
झूठे  जमाने  की  सच्ची  सदा  हूँ मैं

इक दिल बचा था वो भी बेईमान हो गया
अब  आप  तय  करें  कितना बचा हूँ मैं

जो भी हूँ  मैं हारा  बस दिल से खेल के
दिमाग़  वाले  कहते  हैं सीदा गधा हूँ मैं

दिल के सौदे में सदा घाटा हुआ  है क्यों
रिश्ते  के जुआठे में सदा से नधा  हूँ मैं

ऊपर की  हँसी अन्दर के रोने को दबाती
दो - दो अदा के बीच में पिस रहा  हूँ मैं

पवन तिवारी

सम्वाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com




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