ख़ास आम सबके दुखों का
घड़ा हूँ मैं
क्या कहूँ नयी उमर का अब्बा
हूँ मैं
सुनके सभी के ग़म दीवार
हो गया
खुशियों के नाम पे
झूठी अदा हूँ मैं
अन्दर है सब खराब
मगर ठीक ही कहूँ
झूठे जमाने की सच्ची सदा हूँ मैं
इक दिल बचा था वो भी
बेईमान हो गया
अब आप तय करें कितना
बचा हूँ मैं
जो भी हूँ मैं हारा बस दिल से खेल के
दिमाग़ वाले कहते हैं
सीदा गधा हूँ मैं
दिल के सौदे में सदा
घाटा हुआ है क्यों
रिश्ते के जुआठे में
सदा से नधा हूँ मैं
ऊपर की हँसी अन्दर
के रोने को दबाती
दो - दो अदा के बीच
में पिस रहा हूँ मैं
पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com
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