पावस का यह अनुपम
मौसम
दुर्लभ हो गया अपना
संगम
पवन झकोरे बारिश के
संग
रिमझिम-रिमझिम लहरे
ये मन
कितने बरस हुए प्रीत
निभाये
सावन के संग गीत न
गाये
कसक हिया में कसक के
रह गयी
इस पावस भी तुम न
आये
झींसी रिमझिम -
रिमझिम गाये
अंग - अंग में अगन
लगाये
टिप - टुप पड़ें मेंह
की बूँदें
तरुणाई का मन ललचाये
ये सावन भी रीत न
जाए
प्रणय भरा मन खीझ न
जाए
सावन से पहले आ जाओ
अब की चाहे कुछ हो
जाए
ये अभिलाषा मर ना
जाए
उर का अमिय सूख न
जाए
सारे बंधन तोड़ के आओ
तुम बिन सावन जिया न
जाए
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com
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