जग की प्रिय बतकही
है निंदा
बहुतों का रस रत्न
है निंदा
पर जो लक्ष्य को लेकर
दृढ़ हैं
उनके आगे बेबस निंदा
जो सच को लेकर है
जिन्दा
जो सपनों को लेकर
जिंदा
अवरोधक जितने हैं
इनके
होंगे सब शर्मिंदा जिंदा
पहले तो सब रोकेंगे
बात - बात पर
टोकेंगे
फिर भी ना माने जो
बढ़ गये
कहके सनकी झोकेंगे
दुनिया पर तुम कान न
दो
नहीं व न पर ध्यान न
दो
कुछ भी कहें
सम्बंधी,परिचित
पर उनको अपमान न दो
बढ़ने लगोगे जब तुम
आगे
कानाफूसी पीछे – आगे
फिसल के उनकी जुंबा
कहेगी
जाएगा ये पता था आगे
ऐसे में खुशियाँ पाओगे
चाहोगे जो वो पाओगे
जो दुश्मन थे मीत बनेंगे
गीत खुशी के गा पाओगे
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com
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